सोमवार, 28 मार्च 2022

पत्रकारिता की कंटीली डगर- 8


एक पत्रकार की अखबार यात्रा की आठवीं किश्त


पत्रकारिता की कंटीली डगर

भाग- 8

17. प्रादेशिक अखबार में नौकरी

धनबाद के क्षेत्रीय अखबार दैनिक चुनौती में माफिया नेता के गनर ज्ञानी झा उर्फ गिन्नी की धमकी मिलने के बाद से ही मैं वहां से जल्द से जल्द निकलने की फिराक में था। मैनेजर देवानंद सिंह के निस्कासन आदेश ने इसमें एक ट्रिगर का काम किया औऱ मैंने तुरंत पटना के अखबार पाटलिपुत्र टाइम्स में उप समाचार संपादक रह चुके और उस समय इलाहाबाद की प्रतिष्ठित मासिक समाचार पत्रिका माया के राज्य ब्यूरो प्रमुख विकास कुमार झा को पटना ट्रंक कॉल पर फोन लगाया और उनको नौकरी छिन जाने की बात बताई। विकास जी ने मुझे तत्काल पटना बुलाया और पटना से प्रकाशित राष्ट्रीय अखबार आज के स्थानीय संपादक सत्य प्रकाश असीम के पास भेज दिया। विकास जी ने असीम जी से मेरे बारे में पहले ही बात कर ली थी इसलिए मुझे जाते ही नौकरी पर रख लिया गया। न कोई टेस्ट और न कोई इंटरव्यू। आज देश का बहुत पुराना और विश्वसनीय मल्टी एडीशन अखबार था इसलिए उसका न्यूज नेटवर्क भी काफी बड़ा था। आज उन दिनों भी फोटो टाइपसेटिंग तकनीक से छपता था। जनमत और दैनिक चुनौती की तरह हेंड कंपोजिंग से नहीं। आज काफी पुराना अखबार है और यह उन दिनों पटना ही नहीं, पूरे बिहार में एक प्रतिष्ठित और चर्चित अखबार हुआ करता था। बिहार की हिन्दी पत्रकारिता के कई बड़े नाम वहां काम करते थे। वहां डेस्क पर भी कई विद्वान और अच्छे पत्रकार साथी मिले। आज में कई समाचार एजेंसियों की टेलीप्रिंटर सेवाएं ली जाती थी इसलिए वहां रहकर मुझे और ज्यादा सीखने का मौका मिला। हिन्दी-अंग्रेजी की कई-कई समाचार एजेंसियों की खबरों को एक लाथ मिलाकर खबरों की विस्तृत कंपाइलिंग और उनकी एडिटिंग का काम सीखने का अवसर भी मिला। आज का अपना निजी समाचार नेटवर्क भी किसी समाचार एजेंसी की तरह ही काफी बड़ा था, खासकर हिन्दी भाषी राज्यों में जहां जिलों से लेकर प्रखंडों और कस्बों तक में उनके अपने संवाददाता काम करते थे।

पटना में आज का दफ्तर रेलवे स्टेशन के पास ही फ्रेजर रोड पर था और उससे लगभग तीन-चार किलोमीटर के फासले पर कदमकुआं में शहर के नए बहुचर्चित अखबार पाटलिपुत्र टाइम्स का दफ्तर था। पाटलिपुत्र टाइम्स में मैं बहुत पहले से लिखता-छपता था और वहां के संपादक से लेकर डेस्क और रिपोर्टिंग के तमाम लोगों से बहुत अच्छी पहचान बन गई थी। पाटलिपुत्र टाइम्स में कई ऐसे पत्रकार भी थे जो दूसरे राज्यों से आए थे। संपादक माधवकांत मिश्र उत्तर प्रदेश के थे जो दिल्ली की बहुचर्चित पत्रिका सूर्या इंडिया से लाए गए थे। डेस्क पर हिन्दी भाषा में बिल्कुल मंजे हुए पत्रकार अवधेश प्रीत तब के मद्य प्रदेश और अब के छत्तीसगढ़ के बीसलपुर से थे। अखबार में बहुत ही सौहार्दपूर्ण माहौल था जो अमूमन कम ही जगहों पर देखने को मिलता है। आज में काम करते हुए भी मैं किसी-किसी दिन खाली समय में टहलते हुए पाटलिपुत्र टाइम्स भी चला जाया करता था। मेरे धनबाद से पटना आ जाने और मुझे आज में नौकरी मिल जाने से पाटलिपुत्र टाइम्स में लगभग सभी को खुशी हुई थी। अखबार के समाचार संपादक और मेरे बड़े भाई के तुल्य ज्ञानवर्धन मिश्र और डेस्क के कुछ साथियों ने तो कहा था, चलिए धनबाद माफिया के अखबार दैनिक चुनौती से आपका पिंड छूट गया।

आज में काम करते हुए चंद हप्ते ही बीते थे, महीना भी पूरा नहीं हुआ था कि मैं एक दिन फिर दोपहर को यूं ही टहलते हुए पाटलिपुत्र टाइम्स के दफ्तर चला गया था। संपादकीय विभाग में दाखिल होते ही समाचार संपादक ज्ञानवर्धन मिश्रजी ने मेरी तरफ देखकर हंसते हुए कहा, आईए गणेशजी, मेरे पास बैठिए। मैंने उनको प्रणाम किया और उनके पास एक खाली कुर्सी पर बैठ गया। फिर ज्ञानवर्धन भैया बोले, गणेशजी, आज से और अभी से आपको यहीं काम करना है। असीम जी को मैं बता दूंगा और मना भी लूंगा, आप उसकी चिंता न करें। उनकी इस बात पर मै हक्का-बक्का रह गया। मुझे तो कुछ कहते ही नहीं बन रहा था। ज्ञानवर्धन भैया ने बगल में डेस्क पर बैठे चीफ सब एडीटर (मुख्य उप संपादक) महेंद्र श्रीवास्तव जी से कहा, महेंद्र भैया, गणेश जी को खबर दीजिए। ज्ञानवर्धन भैया को ऐसा कहते ही महेंद्र भैया ने मुझे एजेंसी की एक खबर पकड़ा दी। मेरी पीठ पर ज्ञानवर्धन भैया आकर खड़े हो गए। उनका दोनों हाथ मेरे दोनों कंधों पर था। मैं खबर बनाने लगा। मन में खुशी भी हुई कि चलो जिस अखबार में इतने समय से लिख-छप रहा हूं और नौकरी करने की इच्छा भी पाल रहा था उसी में नौकरी मिल गई और चिंता यह हो रही थी कि धनबाद से निकालकर मुझे राजधानी पटना लानेवाले विकास कुमार मिश्र जी और सत्य प्रकाश असीम जी क्या सोचेंगे। उन दोनों के सामने तो मैं मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहूंगा। यही सब सोचते हुए मैं लगातार खबरें बनाता जा रहा था। तभी संपादक विनोदानंद ठाकुर वहां आ गए और उन्होंने मेरा स्वागत करते हुए और मुझे बधाई देते हुए कहा कि दस दिनों के भीतर वे मुझे नियुक्ति पत्र दे देंगे। और इस तरह मैं पटना के बहुचर्चित अखबार पाटलिपुत्र टाइम्स का पत्रकार बन गया।

पाटलिपुत्र टाइम्स में मुझे अचानक और बिना किसी परिश्रम के नौकरी मिल गई थी। उन दिनों पटना से बिड़ला ग्रुप के दो अखबार निकलते थे। अंग्रेजी में द सर्चलाइट और हिन्दी में प्रदीप छपता था। और उन दोनों अखबारों को बंद कर उनकी जगह अंग्रेजी में हिन्दुस्तान टाइम्स और हिन्दी में हिन्दुस्तान का प्रकाशन शुरू हो गया था। यह परिवर्तन मेरे पाटलिपुत्र टाइम्स की नौकरी शुरू करने के ठीक एक दिन पहले ही हुआ था। इस मौके पर अचानक एक दिन पहले ही पाटलिपुत्र टाइम्स के ज्यादातर पत्रकार नौकरी छोड़कर बिड़लाजी के अखबार में नौकरी करने चले गए थे। यह सब अचानक और एक ही झटके में हुआ था। पाटलिपुत्र टाइम्स में काफी कम पत्रकार बचे रह गए थे। अखबार निकालने के लिए लोग कम पड़ रहे थे। और यही मुख्य वजह थी जो मुझे वहां बिना किसी परिश्रम के आसानी से और तत्काल नौकरी पर रख लिया गया था। पर मेरे लिए तो यह एक शौभाग्य ही साबित हो रहा था। वजह जो भी हो, पर मैं तो इसे ज्ञानवर्धन भैया की असीम कृपा ही मानता हूं। वरना मेरी जगह कोई और भी हो सकता था। पटना में तो उन दिनों भी ढेरों अच्छे नौजवान फ्रीलांसर्स थे जो हमेशा नौकरी पाने के लिए प्रयासरत रहते थे। ज्ञानवर्धन भैया हमेशा से एक अभिभावक जैसा ही अपनत्व रखते थे। जिस समय मैं पाटलिपुत्र टाइम्स का कर्मचारी नहीं था और सिर्फ एक फ्रीलांसर की हैसियत से वहां लिखता-छपता था उस समय भी वे मेरे अभिभावक ही थे। आज भी वे जब भी मिलते हैं या फोन करते हैं तो इसी हैसियत से मिलते और बात करते हैं।

पाटलिपुत्र टाइम्स की नौकरी काफी आनंददायक थी। अखबार का माहौल भी सुखद था। वहां रहकर मैंने एजेंसी की खबरों के संपादन में परिपक्वता और महारत हासिल की और कई बार अच्छी और बहुचर्चित पॉलिटिकल और क्रिमिनल आउटडोर रिपोर्टिंग भी की। मनमाफिक लिखा और छपा भी। इस अखबार ने मुझे पत्रकारिता में एक नई ऊंचाई दी। अगर मेरी याददाश्त सही है तो मेरे पाटलिपुत्र टाइम्स में रहते हुए ही न्यूज एजेंसी पीटीआई ने अपनी हिन्दी समाचार सेवा पीटीआई भाषा की शुरुआत की थी। बाद में इस समाचार सेवा का नाम सिर्फ भाषा हो गया।

18. हत्याकांड की खबर और माफिया की धमकी

पाटलिपुत्र टाइम्स की नौकरी के दौरान मेरे गृह जिले मुंगेर के तारापुर में चार लोगों की हत्या की एक सनसनीखेज घटना हुई। इस सामूहिक हत्याकांड में तारापुर के विधायक शकुनी चौधरी का नाम आया था। मामला पॉलिटिकल था और मेरे इलाके का था इसलिए अखबार नें मुझे वहां रिपोर्टिंग के लिए भेज दिया। शकुनी चौधरी की छवि एक माफिया नेता की थी और उनपर पहले भी कई बार हत्या के आरोप लग चुके थे। पहले वे सेना में थे और उनके बारे में कहा जाता था कि वे सेना की नौकरी छोड़कर भाग आए थे। लोग कहा करते थे कि वे सेना के भगोड़े थे। अखबार के एसाइनमेंट पर मैं तारापुर गया और उन लोगों के घर भी गया जिनकी हत्या हुई थी। मेरी रिपोर्ट भी इसी लाइन पर निकल कर आई। पर मुझपर जान का खतरा भांप कर चीफ सब महेंद्र भैया (महेंद्र श्रीवास्तव) ने खबर में मेरी बाईलाइन नहीं जाने दी। खबर पाटलिपुत्र संवाददाता के नाम से छपी। खबर 13 जनवरी, 1987 को छपी और उसकी जबर्दस्त प्रतिक्रिया हुई, खासकर तारापुर और पटना के राजनैतिक गलियारों में।

सामूहिक हत्याकांड की इस खबर के छपने के चंद दिनों बाद 03/03/1987 को पटना में अखबार के दफ्तर के पते पर मेरे नाम लिफाफे में एक चिट्ठी आई जिसमें मुझे सीधे-सीधे सपरिवार जान से मार डालने की धमकी दी गई थी। हाथ से लिखी गई इस चिट्ठी में लिखनेवाले ने अपना नाम कारू सिंह लिखा था। उस समय कारू सिंह विधायक शकुनी चौधरी के गनर हुआ करते थे। पत्र में लिखा था कि अगर मैंने आगे से कभी कारू सिंह और विधायक शकुनी चौधरी के खिलाफ कुछ भी लिखा तो मुझे और मेरे परिवार के लोगों की हत्या कर दी जाएगी। पत्र में कारू सिंह ने लिखा था कि उन्होंने तारापुर पुलिस को पैसे देकर चार लोगों की हत्या कराई है और अब जो कुछ भी होगा वह पुलिस का होगा। पत्र में आगे लिखा था कि कारू सिंह के हर काम में विधायक शकुनी चौधरी शामिल होते हैं।

कारू सिंह की धमकी वाली हाथ से लिखी गई उस चिट्ठी का मजबून कुछ इस तरह था-

 सेवा में,

श्री गणेश प्रसाद झा जी

उप संपादक, पाटलिपुत्र टाइम्स

आपसे मेरा कहना है कि आप अपने को बड़ा नहीं समझें अन्यथा आपका घर भी संग्रामपुर में है और आप बराबर मेरे बारे में अखबार में कुछ लिख देते हैं। मैंने कुछ भी किया उससे आपको क्या मतलब। अगर मैं चार आदमी को पुलिस से मिलकर मरवाया तो मुफ्त में नहीं। वह लोग मेरे जान के पीछे था। और तारापुर पुलिस जब सारा काम किया फिर मेरा नाम क्यों। तुमको पता नहीं की हमारे डर से तारापुर का कोई जनता नहीं बोल सकता है और पुलिस भी हिम्मत नहीं कर सकती है। अभी तारापुर के प्रखंड विकास पदाधिकारी भी तुम्हारे जैसै बम बम कर रहे थे। एक रोज जब उनसे मैंने मुलाकात कर लिया आज देखो 15 लाख रुपए का सारा काम मुझे दिए। तुम्हें यद दिला देता हूं मैंरे सब काम में विधायक जी साथ हैं, चाहे वह ठीकेदारी हो चाहे और भी कोई काम हो तथा यह भी जान लो मैं एस.यू.सी.आई पार्टी का भी सदस्य हूं और कॉमरेड मिथिलेश सिंह भी मेरे लिए सबकुछ कर सकता है। अभी तो प्रमुख तथा नारायण यादव एवं तरिणी सिंह हमारे खिलाफ हैं। मेरा क्या बिगाड़ सकते हैं। तुम यदि अपना खैर चाहते हो तो मेरे तथा विधायक के बारे में कुछ नहीं निकालो और नहीं इस पत्र का जिक्र किसी से करो वरना तुम्हारा सारा घर परिवार उजड़ जाएगा। और कोई अखबार तुम्हें मदद नहीं करेगा। अगर इस कांड में कुछ होगा तो पुलिस को होगा। हमको क्या मतलब है। आगे अब तुम जानो सोच समझ कर काम करो।

तुम्हारा,

कारू सिंह

(अंग्रेजी में हस्ताक्षर)

इस खबर को अगले दिन 7 मार्च, 1987 को पटना में समाचार एजेंसी यू.एन.आई ने कुछ इस तरह जारी किया-

PRIORITY

PN FOUR

THREATENING

PATNA, MAR 7 (UNI) MR GANESH PRASAD JHA A SUB- EDITOR OF LOCAL HINDI DAILY “PATLIPUTRA TIMES” HAS RECEIVED A LETTER THREATNING TO KILL HIM AND HIS FAMILY.

MR JHA IN A STATEMENT TODAY ALONGWITH THE COPY OF THE LETTER SAID THAT THIS WAS A SEQUEL TO HIS REPORT IN NEWSPAPER POLICE ENCOUNTER ON JANUARY 13 RPT ONE THREE ALLEGING THAT THE ENCOUNTER WAS FAKE AND DONE IN CONNIVANCE WITH AN INDEPENDENT MLA SAKUNI CHOUDHARY AND HIS RIGHTHAND KARU SINGH.

THE LETTER BEARING THE NAME OF KARU SINGH SAID THAT ANY ATTEMPT TO MALIGN THE NAME OF MR CHOUDHARY AND HIS NAME WILL ONLY LEAD TO HIS DEATH AND HIS FAMILY.

MR JHA WHO INCIDENTALLY HAILS FROM THE SAME VILLAGE TO WHICH MR CHOUDHARY AND MR SINGH BELONG SAID HIS FAMILY WAS IN DANGER WHO HAS SOUGHT IMMEDIATE PROTECTION FROM THE GOVERNMENT. UNI  SK . ANJ 1545.

--

CA 21

THREATNING

PATNA, MAR 7 (UNI) MR GANESH PRASAD JHA, A SUB-EDITOR OF LOCAL HINDI DAILY +PATLIPUTRA TIMES+ HAS RECEIVD A LETTER THREATNING HIM AND MEMBERS OF HIS FAMILY WITH DEATH.

IN A STATEMENT ALONG WITH THE COPY OF THE LETTER MR JHA SAID TODAY THAT HE HAD FILED A REPORT ON TARAPUR POLICE ENCOUNTER ON JANUARY 13 RPT ONE THREE STATING THAT THE ENCOUNTER WAS FAKE AND DONE IN CONNIVANCE WITH AN INDEPENDENT MLA SAKUNI CHOUDHURY AND HIS RIGHTHAND KARU SINGH.

THE LETTER BEARING THE NAME OF KARU SINGH SAID THAT ANY  +ATTEMPT TO MALIGN HIM AND MR CHOUDHURY WILL ONLY LEAD TO HIS DEATH AND  HIS FAMILY+.

MR JHA SOUGHT PROTECTION FROM THE GOVERNMENT. UNI SK MM KLC

1832

शकुनी चौधरी के गुर्गे कारू सिंह की इस धमकी वाली चिट्ठी से पाटलिपुत्र टाइम्स के संपादक और समाचार संपादक भी डर गए। उन्हें मेरी और मेरे परिवारजनों की सुरक्षा की काफी चिंता हो गई। उन्होंने इस मामले में अखबार में कुछ भी न छापने को कहा और मुझे इस मामले में चुप ही रहने की सलाह दी। पर मेरा मन नहीं मान रहा था। मैंने अगले दिन एक चिट्ठी तैयार की और चमकी वाली चिट्ठी को उसके साथ नत्थी कर पटना में दोनों समाचार एजेंसियों यूएनआई और पीटीआई को दे आया। थोड़ी ही देर में दोनों समाचार एजेंसियों ने खबर जारी कर दी। तब जाकर पाटलिपुत्र टाइम्स के समाचार संपादक ज्ञानवर्धन भैया (ज्ञानवर्धन मिश्र) इस खबर को छापने को राजी हुए और मुझे भी अपने अखबार के लिए एक अच्छी खबर लिख देने को कहा। अगले दिन पटना के तमाम अखबारों में और दिल्ली और कलकत्ता के भी लगभग सभी हिन्दी और अंग्रेजी के अखबारों में यह खबर छपी थी। उन दिनों पटना में विधानसभा का सत्र भी चल रहा था। लिहाजा सभी अखबारों के पत्रकारों ने तारापुर के निर्दलीय विधायक शकुनी चौधरी से इस पर सवाल पूछ दिया। शकुनी चौधरी धमकी देने या दिलवाने वाली बात से साफ मुकर गए। कारू सिंह का उन्होंने बचाव किया और कहा कि कारू सिंह ऐसा नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि यह चिट्ठी किसी की शरारत हो सकती है और उनका इसमें कोई हाथ नहीं है। उन्होंने अपने बयान में यह भी जड़ दिया कि अगर गणेश झा यह साबित कर दें कि उन्हें धमकी दिलवाने में शकुनी चौधरी का हाथ है तो वे राजनीति से संन्यास ले लेंगे। और अगर गणेश झा अपने इस आरोप को साबित नहीं कर सकें तो वे अपनी पत्रकारिता से संन्यास ले लें। बाद में इस पूरे प्रकरण और तारापुर में विधायक शकुनी चौधरी की माफियागीरी के आतंक की खबर को पटना के कई साप्ताहिक टेबलॉयड्स ने भी छापा।

इस खबर की वजह से कुछ समय बाद मेरे प्रति शकुनी चौधरी के व्यवहार में काफी नरमी आ गई और कटुता धीरे-धीरे खत्म हो गई। फिर वे मित्रवत हो गए। शकुनी चौधरी कुछ समय तक लोकसभा के सांसद भी रहे। वे 1998-99 में समता पार्टी के टिकट पर बिहार के खगड़िया लोकसभा सीट से सांसद चुनकर आए थे। सांसद रहते एक बार उन्होंने दिल्ली में मुझे अपने सरकारी आवास पर खाने पर भी आने को कहा था। उस समय मैं जनसत्ता में था। अब कई बार जब उनसे किन्हीं सार्वजनिक आयोजनों पर मुलाकातें होती हैं तो वे कभी-कभी उस पुरानी खबर का जिक्र करके ठहाके लगाने से भी नहीं चूकते। अपने राजनैतिक कैरियर की शुरूआत में निर्दलीय चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचनेवाले शकुनी चौधरी ने समता पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल (युनाइटेड) और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा में रहकर राजनीति की। शकुनी चौधरी ने अभी कुछ साल पहले राजनीति से संन्यास ले लिया है। अब उनके पुत्र सम्राट चौधरी कई सालों से राजनीति में हैं और अभी बिहार विधानपरिषद के विधायक और सरकार में पंचायतीराज मंत्री हैं। शकुनी चौधरी की पत्नी पार्वती देवी भी तारापुर सीट से विधायक रहीं हैं।

– गणेश प्रसाद झा


आगे अगली कड़ी में...

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