एक पत्रकार की अखबार यात्रा की पैंतालीसवीं किस्त
पत्रकारिता की कंटीली डगर
भाग- 45
105. हाउसिंग लोन का खतरनाक जाल
अब आपको लोन में फंसाने की एक दूसरी कहना सुनाता हूं। जब मैंने हिन्दुस्तान की नौकरी शुरू की थी तो वहां दफ्तर में एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेडका भी एक एजेंट आया करता था। वह वहां किराए के घर में रहकर नौकरी कर रहे पत्रकारों को कर्ज लेकर घर लेने की सलाह दिया करता था और उन्हें समझा बुझाकर हाउसिंग लोन लेने के लिए पटाया करता था। हाउसिंग लोन वाला यह एजेंट कार लोन दिलवानेवाले बैंक के एजेंटों से भी पहले से हिन्दुस्तान के दफ्तर आता था। यह एजेंट मेरे पास भी कई बार आया था पर मैं उसे मना कर देता था क्योंकि मैं अपनी औकात जानता था।
मैंनेइंडियन एक्सप्रेस में नौकरी की थी यह जानने पर उसने मुझे बाताया कि वह इंडियन एक्सप्रेस में ड्राइवर की नौकरी करनेवाले बुद्धिनाथ सिंह का बेटा है। बुद्धिनाथ जी बड़े सज्जन आदमी थे और वे भी सैकड़ों बार कंपनी की कार से रात को मुझे घर पहुंचा चुके थे। मैं उनको अच्छी तरह जानता था। इसी परिचय से उस एजेंट ने मुझे एलआईसी हाउसिंग का लोन लेकर घर खरीदने के लिए तैयार कर लिया। एजेंट ने मुझे समझाया कि जितना मैं किराया देता हूं उतने पैसे में ही मेरा खुद का घर हो जाएगा। एजेंट की यह बात तो बड़ी अच्छी लगी। दफ्तर के कई साथियों ने भी जोर डाला कि मैं लोन लेकर अपना घर खरीद लूं। इस तरह मैंने एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस से 6 लाख रुपए का लोन लेकर गाजियाबाद के वैशाली में एक छोटा घर ले लिया था। पर अचानक हिन्दुस्तान की नौकरी छिन जाने की वजह से लोन की ईएमआई नहीं दे पा रहा था। बाद में हिन्दुस्तानकी नौकरी का पीएफ का जमा पैसा भी निकलवाकर एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस को देकर अपनी ईएमआई रेगुलर करवाई थी। पर आगे फिर पैसे न चुका सकने के कारण मैं फिर से डिफॉल्टर हो गया। कुछ समय बाद एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस कंपनी ने मुझे नोटिस भेजकर परेशान करना शुरू किया। लोन दिलवाने वाला वह एजेंट भी मुझे आकर धमकाने लगा था। मकान दिलवानेवाला प्रोपर्टी डीलर भी आकर धमकियां देता था। एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस वाले, प्रोपर्टी डीलर और एजेंट सभी मिले हुए थे। सभी चाहते थे कि यह मकान जब्त होकर खाली हो जाए तो हम इसे फिर से बिकवाएं और उसमें दोबारा कमीशन खाएं। आखिर एक दिन सुबह-सुबह एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस के कुछ अधिकारी और कर्मचारी कुछ बाउंसरों को साथ लेकर आ गए और मेरे घर का सामान बाहर गली में फेंकने लगे। उन्होंने कुछ सामान बाहर फेंका और फिर मुझे घर से बाहर निकालकर घर में अपना ताला जड़कर सील लगा दिया। बाहर के दरवाजे पर मुझे खड़ा करके एक तस्वीर ली गई। बाहर दरवाजे पर एक नोटिस चिपका दिया कि लोन नहीं चुकाने पर यह मकान जब्त कर लिया गया है।
मकान छिन जाने पर मेरे पास रहने का कोई ठिकाना नहीं बचा था। बाहर फेंके गए सामान उठाकर मैं उसी इलाके में रह रहे अपने गांव के दूर के एक रिश्तेदार आलोक झा के घर चला गया। इस तरह मैंने लोन पर खरीदा गया मकान और दिल्ली में बरसों की नौकरी से हुई कमाई से जुटाए गए घर के सामान भी खो दिए। अपना वह सामान भी मुझे फिर कभी नहीं मिल पाया। एलआईसी हाउसिंग वालों ने बताया था कि नियमानुसार एक निश्चित समय के भीतर 5 हजार रुपए की फीस देकर मैं अपने जब्त मकान की सील खुलवाकर अपना सामन ले सकता हूं। पर उन दिनों मेरी स्थिति ऐसी नहीं थी कि मैं 5 हजार रुपए की मोटी फीस भर सकूं। मैं इस 5 हजार की रकम का इंतजाम नहीं कर पाया।
लगभग महीने भर बाद मैंने वहीं पूर्वी दिल्ली के नोएडा से लगे अशोक नगर में एक निम्नवर्गीय कालोनी में 2 हजार रुपए किराए पर एक कमरा लिया था। पर दिल्ली में नौकरी का कहीं कोई इंतजाम न होने पर मैं पटना के अखबारों में नौकरी तलाशने बिहार चल पड़ा। सोचा अगर बिहार में कहीं काम मिल गया तो आकर अपना बचाखुचा सामान ले जाउंगा। बिहार रवाना होने से पहले एक मित्र से उधार लेकर मकान मालिक को तीन महीने का अग्रिम किराया दे आया था। मैं बिहार अपने गांव चला आया। पर बिहार आने पर भी कई महीनों तक काम नहीं मिल पाया। फिर भी नौकरी तलाशने का प्रयास जारी रखा। आखिरकार करीब 8-10 महीने बाद मुझे पटना के दैनिक जागरण में नौकरी मिल गई। तनख्वाह मिलने पर मैं अपना सामान लाने दिल्ली के न्यू अशोक नगर गया तो वहां देखा कि मेरे मकान मालिक शशिनाथ ने वह कमरा एक दूसरे किराएदार को दे रखा था। उस कमरे में मेरा कोई भी सामान नहीं था। सामान मांगने पर मकान मालिक ने कहा कि “तुम तो कमरा खाली कर गए थे फिर कौन सा सामान लेने आए हो। यहां तुम्हारा कोई सामान नहीं है।“ इस तरह दिल्ली में बरसों की अखबार की नौकरी से अपनी जीवनभर की कमाई से जोड़ा गया मेरा वह सब सामान भी चला गया।
बाद में गाजियाबाद के वैशाली की कालोनी में मैं अपने उस जब्त हो गए मकान पर भी गया। वहां जाने पर पता लगा कि एलआईसी हाउलिंग ने मेरा वह मकान 24 लाख में बेचा दिया था। एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस से मकान खरीदनेवाले ने ही मुझे ऐसा बताया। उस खरीदार ने यह भी सुना था कि यह मकान पहले मेरे नाम था। वहां वैशाली की उस कॉलोनी के मेरे पड़ोसियों ने बताया था कि मकान बेचने के पहले मेरे घर का सारा सामान एलआईसी हाउसिंग वाले ही ट्रक में भरकर ले गए थे। लोगों ने देखा कि मेरा टीवी, फ्रिज, अलमारी, टाइपराइटर, बिस्तर, कपड़े, बरतन वगैरह सबकुछ एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस के अधिकारी उठा ले गए। पर ऐसा करना तो गैरकानूनी ही था। यह तो ठगी और चोरी ही कही जानी चाहिए। फिर मेरा 6 लाख का मकान उन्होंने 24 लाख में बेचा। इसे भी तो ठगी ही कहेंगे। शायद इसीलिए एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस के अधिकारी मुझे जल्दी से जल्दी उस मकान से बेदखल करना चाह रहे थे। लोग मेरी इस दुर्दशा पर कह रहे थे कि यह सब शनि की महादशा चलने का प्रभाव है। पर मेरा मानना है कि ये सारी स्थितयां जनसत्ता के तत्कालीन कार्यकारी संपादक ओम थानवी की वजह से पैदा हुईं। मेरी इस बदहाली के लिए सिर्फ और सिर्फ ओम थानवी ही जिम्मेदार हैं। जनसत्ता की मेरी नौकरी चलती रहती तो न तो दरिद्रता आती, न मैं बैंकों के इस कर्ज और ठगी के जाल में फंसता और न यह सबकुछ हुआ होता।
106. सस्ते अमेरिकी डॉलर का बाजार और कर्ज की फांस
अपना सबकुछ गंवाकर बैंकों के कर्ज के इस चंगुल से बाहर निकलने के कुछ समय बाद मुझे देश की बैंकिंग व्यवस्था से जुड़े एक जानकार ने बताया कि भारत में कारोबार करने वाले विदेशी बैंक कुछ देशों से काफी सस्ते अमेरिकी डॉलर लाकर भारत के कर्ज बाजार में लगाते हैं जिससे उन्हें मोटी आमदनी होती है। उन्होंने कहा कि ऐसे सस्ते अमेरिकी डॉलर ज्यादातर अमेरिका और जापान से आते हैं। बिल्कुल ईजी मनी की तरह। उन्होंने कहा कि दुनिया में सस्ते अमेरिकी डॉलर का बहुत बड़ा बाजार है। यह बाजार अमेरिका से लेकर जापान और दक्षिण अफ्रीका तक फैला हुआ है। इसी सस्ते डॉलर की वजह से भारत के विदेशी बैंक भारतीय बैंकों की तुलना में बहुत आसानी से और बिना किसी ना-नुकुर और बिना किसी को-लेटरल के यानी बिना कुछ गिरवी रखे कर्ज दे देते हैं और यहां तक की कर्ज देने में काफी रिस्क भी उठा लेते हैं। ये विदेशी बैंक कर्ज देते समय यह भी देखना जरूरी नहीं समझते कि जिसे वे कर्ज दे रहे हैं वह कमा कितना रहा है और वह अपनी कमाई से कर्ज चुका भी पाएगा या नहीं। उनकी मंशा सिर्फ ग्राहक को कर्ज के चंगुल में फांसकर बाद में उसका गला मरोड़ने की रहती है। इस तरह लाई गई ईजी मनी से बड़े-बड़े उद्योग धंधों को विस्तार दिया जाता है और बिल्कुल डूब चुके उपक्रम भी खरीद लिए जाते हैं। जानकार ने बताया कि भारतीय कार बाजार में पिछले दिनों आई शिथिलता के बाद कार उयोग को विस्तार देने और उत्पादन बढ़ाने के लिए कई बड़ी कार निर्माता कंपनियों को अरबों-खरबों डॉलर का कर्ज दिया गया है। उन कार निर्माताओं को आसान बाजार उपलब्ध कराने के लिए इसी ईजी मनी के जरिए ग्राहकों को बिना किसी किंतु-परंतु के प्री-एप्रूव्ड ऑटो लोन दिया जा रहा है। यह प्री-एप्रूव्ड ऑटो लोन एक प्रकार की फांस ही है जिसमें अनजाने ही फंसकर भोले-भाले मध्यमवर्गीय अपना सबकुछ गंवा रहे हैं। इसे जानकर मेरी आंख तो खुली पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी और मैं अपना सबकुछ खो चुका था।
– गणेश प्रसाद झा
आगे अगली कड़ी में....
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