सोमवार, 18 अप्रैल 2022

पत्रकारिता की कंटीली डगर- 14

 

एक पत्रकार की अखबार यात्रा की चौदहवीं किश्त


पत्रकारिता की कंटीली डगर

भाग- 14

31. कांग्रेस पार्टी के अखबार में नौकरी

उन्हीं दिनों 1988 में कांग्रेस पार्टी ने दिल्ली से हिन्दी और अंग्रेजी में एक साप्ताहिक टेबसॉयड रिकाला था। अखबार का नाम था कांग्रेस। अखबार का दफ्तर शास्त्री भवन के पास डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद रोड की 14 नंबर कोठी में था। यह कोठी उस समय किसी कांग्रेसी सांसद को आवंटित थी। राजीव गांधी उन दिनों प्रधानमंत्री थे। जनसत्ता के एक वरिष्ठ साथी रहे परमानंद पांडेय उन दिनों उस अखबार में वरिष्ठ पद पर थे। उनके जरिए ही मैं वहां पहुंचा था। वहां मैंने करीब 5 महीने नौकरी की थी। फिर वहीं से बंबई जनसत्ता चला गया था। कांग्रेस उस समय सत्ता में थी इसलिए सत्ता के गलियारों में इस अखबार की उन दिनों खूब चलती थी। यह स्टॉल पर बिकनेवाला अखबार नहीं था। कांग्रेस पार्टी का मुखपत्र था इसलिए कांग्रेसी काडरों के बीच बिकता था। वहां काम करनेवालों के छोटे-मोटे काम तो बस यूं ही हो जाया करते थे। कई साथियों ने उन दिनों रसोई गैस का आउट-ऑफ टर्न कनेक्शन लिया था। सीधे पेट्रोलियम मिनिस्ट्री से आफर आया था कि किसी को रसोई गैस का कनेक्शन चाहिए तो एक अर्जी दे दे। उस समय रसोई गैस के कनेक्शन पर सात साल तक की वेटिंग होती थी।

अब अखबार कांग्रेस पार्टी का था तो खबरें भी पार्टी के नेताओं और पार्टी की गतिविधियों पर ही केंद्रित होती थी। सरकार देश में जो कुछ विकास का काम करती थी उस पर खबरें बनाई जाती थी। मेरे चीफ सब थे एल एन शीतल जी। बड़े सहज और सहृदय। अखबार के दफ्तर में कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता आया करते थे। वहां काम करनेवालों की 24 अकबर रोड तक सीधी पहुंच होती थी। यानी सीधे सत्ता तक पहुंच।

32. बिहार का भूकंप और पुलिस की मार

कांग्रेस अखबार में काम कर ही रहा था कि एक दिन नेपाल और बिहार में जोरदार भूकंप आया। तारीख थी 21 अगस्त, 1988 और समय था तड़के 4:39 बजे। रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 6.9 थी। भूकंप का केंद्र दरभंगा से करीब 80 किलोमीटर उत्तर की तरफ भारत-नेपाल सीमा पर था। 1934 के बाद भारत-नेपाल सीमा पर आनेवाला यह सबसे बड़ा भूकंप था। इस भूकंप से उत्तर-पूर्व के कई राज्य दहल गए थे। बिहार के अलावा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और सिक्किम में भी तबाही मची थी। पड़ोसी देश बांग्लादेश भी दहल गया था। इस भूकंप से बिहार में करीब 50 हजार मकान जमींदोज हो गए थे या फिर बुरी तरह दरक गए थे। लाखों घरों में दरारें आ गईं थीं। कई पुल भी ध्वस्त हो गए थे। पानी-बिजली की लाइनें तबाह हो गई थीं। सड़कों पर गहरी दरारें आ गई थी और रेल की पटरियां धंस गई थीं जिससे रेल और सड़क यातायात बुरी तरह प्रभावित हो गया था। कम से कम 50 हजार परिवार बेघर हो गए थे। इस भूकंप से बिहार में 650 लोगों की जान चली गई थी। अकेले दरभंगा में ही 200 से ज्यादा लोग मारे गए थे। दस हजार से ज्यादा लोग घायल हुए थे। बिहार में सबसे ज्यादा तबाही दरभंगा में हुई थी। 

दरभंगा में भारी तबाही की खबर ने मेरी चिंता बढ़ा दी। मैं पूरी तरह दहल गया। मुझे अपने घर-परिवार की चिंता सता रही थी क्योंकि मेरा गृह जिला मुंगेर भी सिस्मिक जोन में पांचवें नंबर पर आता है। परमानंद पांडेय जी ने मेरी पीड़ा समझी और तुरंत संपादकजी से बात करके मुझे एसाइनमेंट पर भूकंप कवर करने बिहार भेजने का फैसला किया। अगले दिन मुझे एडवांस मंजूर किया गया और मैं तुरंत ट्रेन से रवाना हो गया। उसी दिन दिल्ली के कई दूसरे अखबारों के पत्रकार भी कवरेज के लिए बिहार जा रहे थे। हमारे साथ नवभारत टाइम्स के वरिष्ठ साथी रामबहादुर राय, जनसत्ता के कुमार आनंद, पांचजन्य के रवि प्रकाश, अजित अंजुम और कई दूसरे साथी थे। पटना से सुधीर सुधाकर भी हमारे साथ आ गए थे।

हमें सीधे दरभंगा जाना था। हमारी अगुआई राय साहब कर रहे थे। हम द्रेन से पटना और फिर वहां से बस से दरभंगा पहुंचे। हम दरभंगा रात के करीब 9 बजे पहुंचे। तय हुआ कि हमलोग दरभंगा में राय साहब के एक परिचित के घर जाएंगे। और हो सका तो रात वहीं रुकेंगे। शहर पूरी तरह सदमें में था और बिल्कुल शांत था। बिजली गुल थी और हर जगह अंधेरा और सन्नाटा पसरा हुआ था। हम पैदल ही भूकंप से शहर में हुई तबाही का मुआयना करते हुए चले जा रहे थे। शहर में जिन-जिन मोहल्लों और गलियों से हम गुजरे, हर जगह हमने दरके हुए मकान ही देखे। लोग घरों के बाहर चारपाई डालकर बैठे थे और वहीं सोने की तैयारी कर रहे थे। पुरुष, महिलाएं और बच्चे सभी लोग घरों को बाहर ही थे। पूछने पर लोगों ने बताया कि दो रातों से वे घर के भीतर नहीं रह रहे क्योंकि भूकंप के झटके रह-रहकर अभी भी आ रहे हैं। इन झटकों से उनके दरके हुए मकानों के किसी भी समय ढह जाने का खतरा है।

हम आगे बढ़ते जा रहे थे। रास्ते में कुछ पुलिसवाले गश्ती करते मिले। पुलिसवाले अपनी जीप पर चल रहे थे। पुलिसवालों ने हमें रोका। पूछा, आपलोग इतनी रात कहां जा रहे हैं। शहर में धारा 144 लगी है और आपलोग रात के समय ग्रुप बनाकर चल रहे हैं। गश्ती दल का हवलदार कह रहा था कि पिछले दो दिनों से शहर में वीवीआईपी मूवमेंट हो रहा है जिसकी वजह से पूरा पुलिस महकमा परेशान है और आपलोग नियम का उल्लंघन कर रहे हैं। हमने उनको अपना परिचय दिया और दरभंगा आने का मकसद बताया। पर उस गश्ती दल का हवलदार चंद्रमा सिंह बेवजह हमसे उलझ पड़ा। किसी तरह उन्हें समझा बुझाकर शांत किया गया और मामले को टाला गया। हमलोग आगे बढ़े। मैंने जेब से अपनी नोटबुक निकाली और पुलिस जीप का नंबर नोट कर लिया। नंबर नोट करते देख हवलदार चंद्रमा सिंह बिदक गया। उसने अपनी बेंत से मुझे और सुधीर सुधाकर को बेवजह पीटना शुरू किया और हमें बहुत बुरी तरह पीट दिया। उसने कहा. दिल्ली से आए हैं तो क्या राजीव गांधी के सार (साले) लगते हैं। जाइए, जाकर कह दीजिएगा राजीव गांधी से कि चंद्रमा सिंङ ने मारा है। जो उखाड़ना हो उखाड़ लें।

पुलिस की पिटाई से हमारा बदन लहूलुहान हो गया। पीठ, कमर, जांघ और पैरों में हमें जबरदस्त चोटें आईं। हमें पीटकर पुलिसवाले चले गए। हमलोग वहां से कराहते हुए पैदल ही पूछते-पूछते दरभंगा मेडिकल कॉलेज अस्पताल पहुंचे जो वहां से कुछ ही दूरी पर था। वहां हमने अपना इलाज कराया और अपनी इंजुरी रिपोर्ट बनवाई। इतना कुछ होते-होते हमारी पिटाई की यह खबर वहां के स्थानीय पत्रकारों-संवाददाताओं तक पहुंच गई और कई स्थानीय पत्रकार अस्पताल में ही हमें देखने आ गए। फिर उन स्थानीय पत्रकारों के साथ हमलोग सीधे शहर के टाउन थाने गए और वहां अपनी रिपोर्ट लिखवाई। एफआईआर में हमने पुलिस के हवलदार चंद्रमा सिंह का नाम भी लिखवाया। उन पत्रकारों ने रात को ही इस घटना की खबर अपने-अपने अखबारों को पटना भेज दी। सुबह पटना के सभी अखबारों में यह खबर छप गई कि भूकंप की कवरेज के लिए दिल्ली से आए पत्रकारों को दरभंगा में पुलिस ने बुरी तरह पीट दिया। उस समय कांग्रेस के भागवत झा आजाद बिहार के मुख्यमंत्री थे। विधानसभा का सत्र भी चल रहा था। पटना में पत्रकारों ने इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री को विधानसभा में ही घेर लिया। मुख्यमंत्री ने इस घटना के लिए क्षमा मांगी और तुरंत मामले की जांच का आदेश दिया। उधर पटना में इतना कुछ होते देख दरभंगा के पुलिस अधीक्षक (एसपी) ने भी पत्रकारों के साथ हुई इस घटना के लिए माफी मांगी और हवलदार चंद्रमा सिंह और उनके साथ की गश्ती टीम के सिपाहियों को सस्पेंड कर दिया और विभागीय जांच बिठा दी।

हमलोग रात को राय साहब के परिचित के घर पर रुके। फिर सुबह से शाम तक शहर में घूमकर भूकंप की विनाशलीला देखी और पटना लौटकर आए। पटना से ही मैंने खबर फाइल की। पुलिस पिटाई की चोट इतनी ज्यादा थी कि मैंने बड़ी मुश्किल से पटना में रुककर दिल्ली खबर भेजी। फिर पटना से मैं सीधे मुंगेर अपने घर लौट आया और करीब दो हफ्ते तक वहीं रहकर चोट का इलाज कराता रहा। पुलिस के डंडे की उस चोट का दर्द कई महीनों तक असह्य तकलीफ देता रहा।

– गणेश प्रसाद झा

आगे अगली कड़ी में....

(यह मेरे ब्लॉग ganeshprasadjha.blogspot.com पर भी उपलब्ध है)


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें