एक पत्रकार की अखबार यात्रा की ग्यारहवीं किश्त
पत्रकारिता की कंटीली डगर
भाग- 11
22. चरम पर सिख आतंकवाद
सिखों के लिए एक अलग देश बनाने के इरादे से चलाए जा रहे खालिस्तान आंदोलन की वजह से उन दिनों पूरे पंजाब में सिख आतंकवाद बिल्कुल अपने चरम पर था। आतंकवादियों का नियंत्रण उनके दिवंगत सरगना संत जरनैल सिंह भिंडरांवाले के अनुयाइयों के हाथ में था। आतंकवादी रोज कत्लेआम मचाते थे। रोडवेज की बसों को रास्ते में कहीं भी रोककर हिंदुओं को नीचे उतार लेते थे और बाकी सवारियों समेत बस को आगे रवाना कर देते थे। फिर उन हिन्दू मुसाफिरों को वहीं सड़क किनारे गोलियों से भून दिया जाता था। ऐसी दर्जनों घटनाओं की दर्दनाक खबरें हमने अखबार में छापी थी। दफ्तर में खालिस्तानी आतंकवादियों का प्रेसनोट आता था। आतंकवादी उसे छापने का निर्देश दे जाते थे। पर हमने कभी उसे छापा नहीं। आतंकवादी चोरी छिपे अंग्रेजी में एक टेबलॉएड अखबार खालिस्तान टाइम्स भी निकालते थे और उनका यह प्रोपेगेंडा अखबार प्रतिबंधित था फिर भी आतंकवादी उसे अखबार के दफ्तरों को भिजवाते थे। इन खालिस्तानी आतंकवादियों ने भारत सरकार को डराने और उसपर दबाव डालने के लिए अपना करेंसी नोट भी छाप लिया था। आतंकवादियों को आतंकवादी शब्द लिखने पर कड़ा एतराज था। आतंकवादियों ने अखबारों को प्रेस रिलीज भेजकर इस पर आपत्ति जताई थी औऱ धमकियां भी दी थी। स्थानीय संपादक जितेंद्र बजाज ने आतंकवादियों का निर्देश मानते हुए आतंकवादी शब्द लिखने पर पाबंदी लगा दी थी और उसकी जगह खाड़कू लिखने का निर्देश दिया था। जितेंद्र बजाज ने आतंकवादियों की बात मान ली औऱ उनके ही दिखाए रास्ते पर चल पड़े। और इस तरह जनसत्ता में हम उन खूंखार और जल्लाद आताताई आतंकवादियों को खाड़कू ही लिखने लगे थे। पंजाबी भाषा में खाड़कू का मतलब होता है बहादुर व्यक्ति, अच्छे कामों के लिए लड़नेवाला, अपने अधिकारों के लिए लड़नेवाला इत्यादि। और इस तरह जितेंद्र बजाज ने उन खूंखार आतंकवादियों को अच्छे उद्देश्यों के लिए लड़नेवाला बहादुर व्यक्ति घोषित कर दिया। जाहिर है उनके इस कदम से आतंकवादी खुश ही हुए होंगे। जितेंद्र बजाज अपने इस कदम को सराहनीय बताते थे और खुद ही अपनी पीठ ठोकते थे। बजाज जी कहते नहीं अघाते थे कि उन्होंने आतंकवादियों को जब से खाड़कू लिखना शुरू किया तब से आतंकवादियों की तरफ से अखबार को कोई धमकी नहीं आई।
पंजाब में आतंकवाद इस कदर हावी था कि कभी भी कहीं भी गोलियां चलने लगती थीं। चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश होने के साथ-साथ दो राज्यों पंजाब और हरियाणा की राजघानी भी था इसलिए वहां सुरक्षा व्यवस्था काफी मजबूत थी। फिर भी चंडीगढ़ आतंकवाद की जद में था। राज्य की पुलिस के साथ-साथ चडीगढ़ पुलिस भी लगभग रोज ही आतंकवादी हमले का अलर्ट जारी करती थी। एजेंसी के टिक्कर पर अलर्ट की खबर चलती थी जिसमें चंडीगढ़ के इलाकों में भी हमले का खतरा और सुरक्षा व्यवस्था और पुख्ता करने की बात होती थी। यह लगभग रोज का रूटीन बन सा गया था। हम जब आधी रात के बाद अखबार फाइनल करके दफ्तर से निकलते थे तो दफ्तर की गाड़ी हमें हमारे रहने के ठिकानों और घरों तक छोड़ती थी। सबको घर पहुंचाने के चक्कर में हम हर रात शहर का लगभग चक्कर लगा ही लेते थे। हमारे अंदर काफी डर होता था, पर हम शहर की सुरक्षा व्यवस्था पर नजर डालते निकलते थे। कई बार हम देखते थे कि शाम को अलर्ट आता था पर रात को सुरक्षा कहीं भी पुख्ता नहीं होती थी। सब कुछ आम दिनों की तरह ही चल रहा होता था। सिर्फ मीडिया में ही अलर्ट होता था। शायद सिर्फ हमें बताने के लिए कि शहर की पुलिस बहुत चौकस है।
राजीव मित्तल काफी हंसमुख, दिलदार और फक्कड़ किस्म के इंसान थे। हमें चंडीगढ़ शहर में एकाध हफ्ते ही हुए थे। उस समय हम सभी सेक्टर-20 के अग्रवाल धर्मशाला में ही थे। रात को दफ्तर से लौटने के कोई घंटे-डेढ़ घंटे बाद राजीव ने हम लोगों से कहा, “यार चलो 17 सेक्टर चलते हैं। चाय पीकर आते हैं। टहलते हुए चलेंगे।“ उसकी इस बात पर हममें से सभी एक-दूसरे को देखने लगे। हमने कहा कि शहर में कर्फ्यू जैसे हालात हैं, आतंकवादी हमले का अलर्ट भी है। ऐसे में रात को जान जोखिम में क्यों डालना चाहते हो। पर राजीव ने कहा, “तुम्हें डर लग रहा है। कुछ नहीं होता। पुलिसवालों से मैं निपट लूंगा। चलो घूम कर आते हैं। मजा आएगा।“ बस हम सारे लोग जो करीब 10-12 थे, चाय पीने सेक्टर-17 चल पड़े। सेक्टर 17 चंडीगढ़ का एक पॉश मार्केट है। समझने के लिए इसे आप दिल्ली के कनॉट प्लेस का छोटा सा रूप मान लीजिए। हम निकल पड़े। जगह-जगह पुलिस की पिकेट थी और हर जगह रात का सन्नाटा था। उस सन्नाटे को चीरते हम चले जा रहे थे। आतंकवाद से लड़ने के लिए तैनात सेना के जवानों और पुलिसवालों को भी हम पर आश्चर्य हो रहा था। सुरक्षाबलों ने हमें रोका तो नहीं पर पत्रकारों की टोली जानकर इतना जरूर कहा कि यहां इस तरह रात को बाहर निकलना खतरे से खाली नहीं है। हम सेक्टर-17 गए। वहां रात को चलनेवाला चाय का ठीया भी मिला। हम चाय पीकर ही लौटे। राजीव का कहना था कि किसी नए शहर को समझने के लिए वहां रात को घूमने निकलना जरूरी होता है। फिर तो हम हफ्ते में एकाध रात इस तरह टहलने निकल ही जाया करते थे। रात की हमारी यह यायावरी अग्रवाल धर्मशाला छोड़ने तक जारी रही थी।
23. सेक्टर-17 की आइसक्रीम
जिस दिन हमने जनसत्ता का रिटेन टेस्ट दिया था उस दिन भी शाम को हम पांच लोगों की एक टुकड़ी सेक्टर-17 गई थी। पंजाबी जुबान वाले इसे सतारा सेक्टर बोलते थे। हमारी टीम में मैं, प्रियरंजन भारती, कुमार रंजन, हरजिंदर और राजीव मित्तल कुल पांच लोग थे। राजीव को लखनऊ में ही किसी ने बताया था कि चंडीगढ़ के सेक्टर 17 में आइसक्रीम की बढ़िया पार्लर यानी दुकान है। सो राजीव ने कहा था चलो ढूंढ़ते हैं वह दुकान। और हमने वहां जाकर शानदार आइसक्रीम खाई थी। मैंने उससे पहले आइसक्रीम की ऐसी बड़ी दुकान नहीं देखी थी और न उस तरह की शानदार आइसक्रीम कभी खाई थी। आइसक्रीम काफी महंगी थी पर थी लाजवाब। उतने ही खूबसूरत थे आइसक्रीम के बड़े-बड़े बॉवेल और उसे रखने का डीप फ्रीजर जिसमें अलग-अलग बॉवेल में अलग-अलग रंगों और फ्लेवर के आइसक्रीम रखे हुए थे।
राजीव मित्तल का परिचय हिन्दी ट्रिब्यून के सहायक संपादक रमेश नैयर से पहले से था। जिस दिन हमें नियुक्ति पत्र दिया गया था उस दिन शाम को हम पांच लोग शहर का मुआयना करने निकल पड़े थे। सबसे पहले हम लोग नैयर साहब से मिलने ट्रिब्यून के दफ्तर गए थे। हमें मन में यह डर भी लग रहा था कि कहीं हमारे दफ्तर को यह पता न लग जाए कि हम अपने प्रतिद्वंदी अखबार के दफ्तर गए थे। नैयर साहब जनसत्ता में हमारी नियुक्ति से बहुत प्रसन्न हुए थे और उन्होंने हमारे लिए तुरंत मिठाइयां मंगवा ली थी। बाद में नैयर साहब से हमारी काफी घनिष्टता हो गई थी और हम उनसे मिलने उनके घर भी चले जाते थे। कई बार नैयर साहब घर में अकेले होते थे तो वे खुद ही हमारे लिए चाय बनाने लगते थे। नैयर साहब हमें भारत-पाक विभाजन के समय की आंखों देखी भी सुनाते थे। वे अपनी आंखों देखी सुनाते थे कि कैसे एक समय में पंजाब के हिंदू मंदिरों में भगवद्गीता के साथ-साथ गुरु ग्रंथ साहब भी रखा होता था और मंदिर का हिंदू पुजारी ही गुरु ग्रंथ साहिब का भी पाठ किया करता था। यह उन्होंने उस समय सुनाया था जब सिख आतंकवादियों की ओर से एक बयान आया था जिसमें उन लोगों ने कहा था कि “हम हिन्दू नहीं हैं।“
24. एके-47 का खौफ
आतंकवाद की वजह से उन दिनों चंडीगढ़ के साथ-साथ पूरे पंजाब में स्कूटर और मोटरसाइकिल पर दो सवारियों के बैठने यानी पिलियन राइडिंग पर कड़ी रोक थी। सिर्फ महिलाओं को ही पीछे बिठाने की छूट थी। उन्हीं दिनों वहां के एक पत्रकार ने एक आंखों देखी घटना सुनाई थी। बात चंडीगढ़ के सेक्टर-17 की ही है। रात का समय था और हर जगह सुरक्षाबल अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद थे। एक मोटरसाइकिल आया। उसे एक सरदार चला रहा था और दूसरा सरदार पीछे बैठा था। पीछेवाले ने कंबल ओढ़ रखा था। बाइक एक पिकेट के बैरियर पर रुकी। वहां तैनात सुरक्षाबलो नें धड़ाधड़ अपनी कारबाइनें और एके-47 उस बाइक की तरफ तान दी। बाइक चालक ने कहा कि वह मरीज को अस्पताल ले जा रहा है। पर सुरक्षाबलों को शक हो रहा था इसलिए उन्होंने बैरियर उठाने से मना कर दिया। बाइक चालक अड़ गया कि जाना है तो जाना है। सुरक्षाबलों ने पीछे बैठे सरदार से शरीर पर से कंबल हटाने को कहा। सरदार तैयार नहीं हुआ। उसने कहा कि उसे तेज बुखार है इसलिए उसने कंबल ओढ़ रखा है। सुरक्षाबल के जवानों ने उस बाइक को घेर लिया। फिर कंबल उतरवाया गया। उसके कंबल उतारते ही सारे जवान सन्न रह गए। पीछे बैठे सरदार के गले में लोडेड एके-47 लटक रहा था। सुरक्षाबलों ने उस बाइक चालक से कहा, “हां यार, तेरा साथी तो सच में बहुत बीमार है। जा इसे ले जा अस्पताल।“ और बाइक सर्र से आगे बढ़ गई।
मेरे साथी प्रियरंजन भारती सेक्टर 32डी में एक सरदार जी के मकान में दूसरे माले (दूसरी मंजिल) पर रहते थे और रोज रात को 2 बजे अखबार छूटने के बाद अपनी साइकिल से घर लौटते थे। रास्ता ट्रिब्यून अखबार के दफ्तर के सामने की सड़क से होकर जाता था। वहां भी लड़कों के किनारे सुरक्षाबलों के बंकर बने हुए थे। एक रात बंकर के एक जवान ने उनपर अपनी कारबाइन तान दी और रुक जाने को कहा। फिर दोनों हाथ ऊपर करके बंकर की तरफ बढ़ने को कहा। फिर उनकी तलाशी ली गई। फिर उनसे परिचय पूछा गया। पूछा इतनी रात कहां से आ रहे हो और कहां जा रहे हो। प्रियरंजन जी ने जब पत्रकार होने का अपना परिचय दिया तब जाकर उन पर तनी हुई कारबाइन हटी। संतरी बोला इतनी रात मत चला करो। पर हमारा तो काम ही रात का था। सो प्रियरंजन जी ने रात को भी साइकिल से घर जाना जारी ही रखा। बाद में धीरे-धीरे सुरक्षाबल वाले भी पहचानने लग गए।
– गणेश प्रसाद झा
आगे अगली कड़ी में....
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