एक पत्रकार की अखबार यात्रा की बाइसवीं किश्त
पत्रकारिता की कंटीली डगर
भाग- 22
52. दिल्ली तबादला और कोऑर्डिनेशन की जिम्मेदारी
ससून डॉक गेस्ट हाउस के गोदाम में आने के बाद से मैंने दिल्ली प्रभाषजी को कई बार मैसेज भेजकर उनकों वहां की स्थितियां बता दी थी और उनसे दिल्ली बुला लेने की प्रार्थना करता रहा था। प्रभाषजी ने मुझे बंबई भेजते समय कहा था कि थोड़े समय के लिए भेज रहा हूं। फिर दिल्ली बुला लूंगा। बंबई जनसत्ता में काम करते हुए करीब दो साल पूरे होनेवाले थे कि हमारे प्रधान संपादक प्रभाष जोशी जी बंबई दौरे पर आए। पहले भी कई बार आ चुके थे। पर इस बार आए तो मेरा ट्रांसफर उनके एजेंडे में शामिल था। मैं काफी समय से इसकी मांग भी कर रहा था, खासकर जब से राहुलजी ने ससून डॉक गेस्ट हाउस के फ्लैट से निकालकर हमें नीचे गंदे और टूट्-फूटे गोदाम में रहने के लिए भिजवा दिया था। प्रभाषजी को मैंने गोदाम की स्थितियों के बारे में भी बता रखा था। प्रभाषजी आए तो उन्होंने मुझे राहुलजी के कक्ष में ही बुलवा लिया। राहुलजी के सामने ही उन्होंने मुझे बता दिया कि वे मेरा ट्रांसफर दिल्ली कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “मैं आपका ट्रांसफर दिल्ली कर रहा हूं। पर अपने राहुल जी तो कह रहे हैं कि गणेश झा बहुत अच्छा काम करते हैं इसलिए इनको यहीं रहने दीजिए। क्या करूं यहीं रहने दूं?” मैंने हाथ जोड़ कर उनसे कहा कि नहीं मुझे दिल्ली ही ले चलिए, यहां बहुत दिक्कत हो रही है। इसपर प्रभाषजी बोले, “ठीक है, मैंने आपका कर दिया है। आप जाने की तैयारी कर लीजिए।“ फिर प्रभाषजी राहुलजी को संबोधित करते हुए बोले, “मैंने दिल्ली में गणेश झा की जिम्मेदारी तय कर दी है। ये वहां जनसत्ता के सभी संस्करणों के बीच कोऑर्डिनेशन का काम देखेंगे।“ फिर क्या था, अगले दिन मुझे दिल्ली तबादले की चिट्ठी मिल गई। इस तरह करीब दो साल बंबई में रहने के बाद मेरी दिल्ली वापसी का मुहूर्त बना
बंबई जनसत्ता से दिल्ली ट्रांसफर की चिट्ठी लेने के बाद मैं वहां से रिलीव हो गया और मुझे सात दिनों की ट्रांसफर लीव भी मिल गई। मैंने बंबई दफ्तर से ट्रांसफर एडवांस भी ले लिया। बंबई में तो कभी ठंड होती नहीं पर दिसंबर का महीना था और दिल्ली में उन दिनों काफी ठंड थी। मेरे पास एक भी गर्म कपड़ा नहीं था। जो कुछ मैं दिल्ली से लेकर बंबई आया था उसे बाद में अपने गांव छोड़ आया था। लिहाजा मैंने कोलाबा सर्किल पर मॉल नुमा एक बड़े स्टोर से दो ऊनी स्वेटर, एक मफलर, एक ऊनी लोई और दो कंबल खरीदा था। बंबई के स्टोरों में ऐसे ऊनी कपड़े बंबई से बाहर ठंडे शहरों-इलाकों में जानेवाले लोगों के लिए ही होती हैं। मुझे चर्च गेट से चलनेवाली पंजाब मेल में आरक्षण मिला था। गेस्ट हाउस छोड़ते समय रविराज ने कहा था, "जितनी जिल्लत पिछले कुछ समय में यहां इस गंदे गोदाम में रहकर हमने भोगी है इसे कभी भूलना नहीं और कभी बंबई की तरफ मुंह करके पेशाब भी मत करना।" रविराज ने यह भी कहा था कि अब बहुत जल्द वह भी कंपनी का यह गेस्ट हाउस छोड़कर कहीं और रहने चले जाएंगे। जनसत्ता डेस्क के एक साथी मुझे ट्रेन पर बिठाने चर्च गेट स्टेशन तक आए थे।
53. जयप्रकाश शाही का इस्तीफा और उनकी भविष्यवाणी
बंबई जनसत्ता जाने पर मालूम हुआ कि सथानीय संपादक राहुल देव जी शायद दिसंबर 1988 में बंबई जनसत्ता आए थे। उनके पहले जयंत मेहता को जनसत्ता के बंबई संस्करण का स्थानीय संपादक बनाया गया था। पर जयंत मेहता करीब दो महीने ही वहां रहे। उनके बाद दिल्ली से समाचार संपादक अच्युतानंद मिश्र को बंबई भेजा गया था। जयंत मेहता के समय में ही प्रधान संपादक प्रभाष जोशी जी ने जनसत्ता के लखनऊ में उत्तर प्रदेश राज्य ब्यूरो प्रमुख जय प्रकाश शाही को बंबई भेजा था। उन्हें वहां रिपोर्टिंग की कमान सौंपी गई थी। शाही जी राहुलजी को बहुत अच्छी तरह जानते थे। ऐसा इसलिए क्योंकि दोनों लखनऊ के ही रहनेवाले थे। जैसे ही राहुलजी ने बंबई संस्करण के स्थानीय संपादक का कार्यभार संभाला, शाही जी ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया। जनसत्ता बंबई के कई साथी बताया करते थे कि लखनऊ लौटने से पहले शाही जी बंबई जनसत्ता के कुछ साथियों से कह गए थे कि प्रभाषजी ने राहुलजी को जनसत्ता में लाकर अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती कर दी है। राहुलजी एक नंबर के धूर्त, धोखेबाज, चालाक और मक्कार व्यक्ति हैं। राहुलजी आनेवाले दिनों में प्रभाषजी का पत्ता काट देंगे। और वह समय भी जल्दी ही आनेवाला है। जय प्रकाश शाही जी की यह बात एक भविष्यवाणी थी। शाही जी अब हमारे बीच नहीं हैं, पर उनकी यह भविष्यवाणी कुछ ही साल बाद सही साबित हो गई। (इसे आप आगे पढ़ेंगे।)
– गणेश प्रसाद झा
आगे अगली कड़ी में....
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