रविवार, 31 जुलाई 2022

पत्रकारिता कीकंटीली डगर- 29

एक पत्रकार की अखबार यात्रा की उनतीसवीं किश्त

पत्रकारिता की कंटीली डगर

भाग- 29

68. जनसत्ता को मुनाफे की जगह घाटे में दिखाने का खेल

जनसत्ता के जानकार बताते हैं कि जनसत्ता कभी भी धाटे में नहीं रहा। चंडीगढ़ और बंबई संस्करण तो हमेशा से मुनाफे में रहा। चंडीगढ़ संस्करण ने तो अपने पुलआउट से एक-एक दिन में कई-कई लाख रुपए कमाकर दिए। पर कंपनी वाले जनसत्ता के इस मुनाफे को हमेशा इंडियन एक्सप्रेस के खाते में डाल देते थे ताकि उनका फ्लैगशिप अखबार इंडियन एक्सप्रेस हमेशा मुनाफे में नजर आए। हिमाचल प्रदेश में इंडियन एक्सप्रेस का कोई नामलेवा नहीं था पर जनसत्ता वहां जमकर बिकता था। 1995 से 1998 के दौरान हिमाचल में इंडियन एक्सप्रेस की बमुश्किल 15-20 कॉपियां जाती थी पर जनसत्ता की 1500 कॉपियां जाती थी। सर्कुलेशन वाले मांग आने पर भी जनसत्ता की कॉपियां नहीं बढ़ाते थे। कहते थे इंडियन एक्सप्रेस की बढ़ाओ तब जनसत्ता की बढ़ाएंगे। इस तरह कंपनी की पॉलिसी जानबूझकर तरह-तरह की गंदी चाल  चलकर जनसत्ताको हमेशा नीचे गिराते रहने की होती थी। फायदे में चल रहे जनसत्ता के चंडीगढ़ और बंबई संस्करण को जानबूझकर हमेशा नुकसान में दिखा-दिखाकर अनसस्टेनेबल करार देकर फरवरी 1996 में बंद कर दिया गया। यह सब कंपनी मालिक की इजाजत और प्रबंधन के कहने पर ही हो रहा था। यानी कंपनीजनसत्ता को पूरी तबीयत से मार डालने में जुटी थी।

69. जनसत्ता की बर्बादी पर अथ्ययन और बहस की मांग  

जनसत्ता का नाम हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास में एक मील का पत्थर बनकर स्थापित हो गया है। इस अखबार ने हिन्दी पत्रकारिता को एक नई दिशा दी। जनसत्ता के पुराने लोग और इसके जानकार कहते हैं कि जनसत्ताके अवसान के कारणों को ठीक से समझने के लिए इस पर भी एक वृहद अध्ययन कराया जाना चाहिए और इसपर एक व्यापक बहस भी होनी चाहिए कि राम बहादुर राय और अच्युतानंद मिश्र जी जनसत्ता छोड़कर नौकरी करने नवभारत टाइम्स क्यों चले गए थे और फिर कुछ समय बाद जनसत्ता क्यों लौट आए थे। बनवारी जी ने दिल्ली जनसत्ता के स्थानीय संपादक पद से इस्तीफा क्यों दे दिया। प्रभाष जोशी के बाद जनसत्ताका संपादक तो बनवारी जी को ही होना चाहिए था।जनसत्ता की कमान राहुल देव के बाद अच्युतानंद मिश्र जी को और उनके बाद ओम थानवी जी को संभालने को क्यों दे दिया गया। और उसके बाद चंडीगढ़ संस्करण के रिपोर्टर मुकेश भारद्वाज को जनसत्ता का कार्यकारी संपादक कैसे और क्यों बना दिया गया। इससे ऐसा लगता है कि जनसत्ता की रीढ़ रहे पुराने जनसत्ताई लोग जनसत्ता को इस तरह तबीयत से मारकर डुबो देने के पीछे कोई इंटर्नल या एक्स्टर्नल सबोटॉज वाला खेल तो नहीं देख रहे हैं जो उस समय भी काम कर रहा था और शायद कहीं न कहीं अभी भी काम कर रहा है। जनसत्ताई लोग आज जिस अध्ययन और बहस की बात कर रहे हैं उससे उम्मीद की जानी चाहिए कि इससे शायद उस सबोटॉज वाली शक्ति का कुछ खुलासा हो सकेगा। 

70. ओम थानवी पर देश विरोधियों की मदद का आरोप !

फरवरी 2022 में ओम थानवी जयपुर के हरिदेव जोशी पत्रकारिता ओर जनसंचार विश्वविद्यालय के कुलपति थे। वहां उनपर आरोप लगे कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान अपने पद का दुरुपयोग कर इस विश्वविद्यालय को दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की तरह देश विरोधियों का अड्डा बनाने की खूब कोशिश की। उनपर आरोप लगे कि ओम थानवी के प्रश्रय पर जेएनयू के तमाम ऐसे टुकड़े-टुकड़े गैंग के लोग जयपुर आकर इस विश्वविद्यालय में अड्डा जमाने लगे थे। इससे नाराज होकर राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने विश्वविद्यालय के बोर्ड ऑफ मेनेजमेंट और परामर्शदात्री समिति की बैठक को दो बार रुकवाया। राजस्थान भाजपा का कहना था कि वे इस विश्वविद्यालय को देश विरोधी तत्वों का अड्डा किसी भी सूरत में नहीं बनने देंगे। हरिदेव जोशी पत्रकारिता विश्वविद्यालय को जयपुर का जेएनयू बनाया जा रहा है जो ठीक नहीं है और यह देशहित में नहीं है।

जयपुर में हरिदेव जोशी पत्रकारिता ओर जनसंचार विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में ओम थानवी की नियुक्ति गलत तरीके से की गई थी। यह तिकड़मी ओम थानवी की एक जुगाड़बाजी थी। उनकी इस नियुक्ति को लेकर काफी विवाद हुआ था और मामला राजस्थान हाईकोर्ट तक पहुंच गया था। राजस्थान के ही पंकज प्रताप सिंह रघुवंशी व अन्य की याचिका पर हाईकोर्ट ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, राजस्थान सरकार, ओम थानवी और हरिदेव जोशी पत्रकारिता और जनसंचार विश्वविद्यालय चारों को नोटिस जारी किया था। मामले में ओम थानवी के पास पीएचडी की डिग्री नहीं होने और प्रोफेसर के पद का 10 साल का अनुभव नहीं होने के वावजूद सारे यूजीसी नियमों और यूनिवर्सिटी कानून को तोड़कर ओम थानवी की की नियुक्ति किए जाने का आरोप लगाया गया था। याचिका पर हाईकोर्ट के जस्टिस मनिन्द्र मोहन श्रीवास्तव और जस्टिस बीरेंद्र कुमार की बेंच ने सुनवाई की।


इस मामले में हाईकोर्ट में सिविल रिट और जनहित याचिका लगाई गई है। याचिकाकर्ता के वकील अरविंद कुमार भारद्वाज की तरफ से हाईकोर्ट को बताया गया कि विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त किए गए ओम थानवी इस पद के लिए जरूरी योग्यता ही नहीं रखते। यूजीसी के नियमों के मुताबिक कुलपति बनने के लिए 10 साल तक प्रोफेसर के रूप में काम करने का अनुभव और पीएचडी की डिग्री होना जरूरी है। याचिका में पूछा गया है कि बिना जरूरी योग्यता के फिर किस आधार पर उन्हें प्रदेश के इकलौते पत्रकारिता विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया है। हाईकोर्ट में ओम थानवी का बायोडाटा और नियुक्ति पत्र पेश किया गया है।

इस मामले में वकील अरविंद कुमार भारद्वाज ने मीडिया को बताया कि पीएचडी करने के बाद ही कोई शिक्षक प्रोफेसर बन सकता है। उससे पहले उसे सहायक और एसोसिएट प्रोफेसर के तौर पर काम करने का अनुभव लेना पड़ता है। हरिदेव जोशी पत्रकारिता और जनसंचार विश्वविद्यालय की नियमावली में लिखा है कि कुलपति के पद के लिए 10 साल का अनुभव होना चाहिए। जबकि ओम थानवी सिर्फ पत्रकारिता के क्षेत्र में अनुभव रखते हैं। कोर्ट में ओम थानवी का बयोडाटा और नियुक्ति पत्र पेश किया गया है जिस आधार पर पाया गया है कि उन्हें 10 साल का प्रोफेसर पद का अनुभव नहीं है। याचिका में कहा गया है कि हरिदेव जोशी पत्रकारिता और जनसंचार विश्वविद्यालय पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान खोली गई थी। बाद में भारतीय जनता पार्टी की सरकार के आने के बाद इस विश्वविद्यालय को बंद कर दिया गया था। अब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार की फिर से वापसी होने पर विश्वविद्यालय को फिर से शुरू किया गया है। जब से इस पत्रकारिता विश्वविद्यालय को बंद कर दिया गया था तब से इस विश्वविद्यालय की फैकल्टी को राजस्थान विश्वविद्यालय में शिफ्ट कर दिया गया था। राजस्थान विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर मास कम्यूनिकेशन में फैकल्टी पढ़ाती आ रही थी। यह फैकल्टी अब वापस इस हरिदेव जोशी पत्रकारिता और जनसंचार विश्वविद्यालय में लौट आई है।

जनसत्ता से उनके रिटायर होने के कुछ ही दिनों बाद नवंबर 2015 में ओम थानवी को लेकर सोशल मीडिया में एक ऐसी खबर फैली थी कि मोदी सरकार के विरोध में दिल्ली के मावलंकर हॉल में एक प्रतिरोध सभा का आयोजन करने के लिए विपक्ष के एक बड़े सासंद ने उनको दस करोड़ रुपए दिए थे। 

– गणेश प्रसाद झा

आगे अगली कड़ी में....

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