एक पत्रकार की अखबार यात्रा की पच्चीसवीं किश्त
पत्रकारिता की कंटीली डगर
भाग- 25
58. दाऊद ने दे दी थी विवेक अग्रवाल और अनिल सिन्हा की हत्या की सुपारी
जनसत्ता में दाऊद इब्राहिम की गिरफ्तारी और टाइगर मेमन की हत्या की यह झूठी खबर छपने के तुरंत बाद क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल को कराची से दाऊद इब्राहिम ने फोन किया और कहा कि यह झूठी खबर छापकर उन्होंने बहुत बड़ी गलती कर दी। दाऊद ने बंबई में काम कर रहे अपने एक हिटमैन को विवेक अग्रवाल की हत्या की सुपारी दे दी। विवेक हैरान थे कि उन्होंने तो कुछ लिखा ही नहीं और उनको तो इस खबर के बारे में कुछ मालूम भी नहीं है। फिर दाऊद ने नाहक उनकी हत्या की सुपारी दे डाली। बंबई जनसत्ता में जो खबर छपी थी उसमें कोई बाईलाइन नहीं थी। सिर्फ जनसत्ता संवाददाता गया था। प्रभाष जोशी जी ने खबर में अनिल सिन्हा की बाईलाइन देने की इजाजत दे दी थी। पर पेज बनते समय उसकी बाईलाइन बड़े रहस्यमय तरीके से हटा दी गई। पेज पेस्टिंग विभाग के जमादार जी बना रहे थे और पेज डेस्क प्रभारी जावेद इकबाल ने बनवाया था। दाऊद की वह खबर पेज पर जमादार जी ने ही चिपकाई थी। पेज बनाते समय जमादारजी ने बड़े से पेज मेकिंग हॉल में सबके सामने कहा था कि "कल अगर यह खबर सही निकलती है तो मैं नौकरी से इस्तीफा दे दूंगा। ये खबर सही हो ही नहीं सकती।" जमादारजी की यह बात सुनकर वहीं हॉल में बगल में पेज बनवा रहे इंडियन एक्सप्रेस, फानेंसियल एक्सप्रेस, समकालीन और लोकसत्ता के पत्रकारों और पेस्टिंग कर्मचारियों ने आपस में बोलना शुरू किया कि ऐसी अपुष्ट और झूठ निकल जा सकने वाली खबर जनसत्ता वाले क्यों लगा रहे हैं। राहुलजी भी पेज बनाते समय वहां गए थे जब वहां इस तरह की बातें बोली जा रही थीं। पर राहुलजी ने खबर को रोका नहीं। खबर से अनिल सिन्हा की बाईलाइन हटा दी गई। शायद राहुल देव का निर्देश था कि बाईलाइन हटा ली जाए। शायद राहुलजी को भी अनिल सिन्हा पर किसी संभावित हमले का अंदेशा था। विवेक अग्रवाल को अपने सूत्रों से अपनी हत्या की सुपारी दिए जाने की खबर मिल गई और उन्होंने मान लिया कि अब उनकी हत्या हो जाएगी। उन्होंने घर से निकलना बंद कर दिया। उन्होंने दाऊद के हिटमैन को समझाने की कोशिश की कि यह खबर उन्होंने नहीं, रिपोर्टर अनिल सिन्हा ने लिखी है। पर हिटमैन उनकी बात मानने को तैयार नहीं हुआ। विवेक का मरना तय हो गया था। दो दिन बाद जब जनसत्ता के विभिन्न संस्करणों का बंडल आया तो विवेक की सांसें फिर से चलनी शुरू हुईं। विवेक ने जनसत्ता का दिल्ली, चंडीगढ़ और कलकत्ता संस्करण हिटमैन को दिखा दिया। इन संस्करणों में छपी खबरों में अनिल सिन्हा की बाईलाइन थी। इन अखबारों को देखने के बाद ही हिटमैन ने मामला समझा और विवेक को बख्श दिया। अब हिटमैन की बंदूक की नली अनिल सिन्हा की तरफ घूम गई। अनिल सिन्हा ने भी मारे जाने के डर से घर से निकलना बंद कर दिया। वे घर के भीतर भी खिड़की से दूर ही रहने लगे थे। डर था कि कहीं दाऊद का कोई शूटर टेलीस्कोपिक हथियार से बाहर से ही निशाना न लगा ले। विवेक अग्रवाल और अनिल सिन्हा करीब दो हफ्तों तक डर से सो नहीं पाए। बाद में मामला समझने के बाद जब दाऊद शांत हुए तब जाकर इन दोनों की जान में जान आई। दोनों को नया जन्म मिला।
इस झूठी खबर को लेकर दफ्तर में एक दिन स्थानीय संपादक राहुल देव की ऋषिकेश राजोरिया से गरमागरम बहस हो गई। ऋषिकेश का कहना था कि इस झूठी खबर के मामले की इन-हाउस जांच होनी चाहिए जिससे यह जिम्मेदारी तय हो सके कि गलती किससे हुई। इस पर राहुल देव चिल्लाने लगे कि झूठी खबर छप गई तो छप गई। क्या करूं? मैं इस्तीफा दे दूं? इस खबर के झूठ निकल जाने पर दिल्ली में भी डेस्क के कई साथी कहने लगे थे कि अगले दिन अखबार में यह छापा जाना चाहिए था कि किसने यह खबर दी थी और बिना किसी सबूत के उसकी बात पर यकीन क्यों कर लिया गया। पर इस सिलसिले में कुछ नहीं किया गया। न कोई जांच हुई, न कोई कार्रवाई।
59. प्रभाष जोशी का पत्ता काटकर राहुल देव बने संपादक
वह साल था 1995 और 16 नवंबर की तारीख थी। सबकुछ आम दिनों की तरह सामान्य ही था। प्रभाष जोशी जी दफ्तर में ही थे और अपने कक्ष में बैठकर उस दिन का संपादकीय लिख रहे थे। दिल्ली संस्करण के स्थानीय संपादक बनवारी जी भी अपने कक्ष में थे। मैं 3 बजे शाम से 9 बजे रात की पाली में था। अचानक दफ्तर में गहमा-गहमी बढ़ गई। दिल्ली दफ्तर के जेनरल मैनेजर जी आऱ सक्सेना को कंपनी के हेडक्वार्टर बंबई से अखबार समूह के नए मालिक विवेक गोयनका (विवेक खेतान) का कोई बहुत खास और बहुत अर्जेंट मैसेज आ गया था। मालिक का आदेश था कि आज जनसत्ता के प्रधान संपादक प्रभाष जोशी रिटायर हो गए हैं और आज से उनका नाम अखबार के प्रधान संपादक के रूप में नहीं जाएगा। आज से जनसत्ता के बंबई संस्करण के स्थानीय संपादक राहुल देव अखबार के कार्यकारी संपादक बनाए गए हैं। आज से राहुल देव का नामजनसत्ता के कार्यकारी संपादक के रूप में छपेगा। प्रभाष जोशी आज से जनसत्ता के सलाहकार संपादक होंगे।
विवेक गोयनका के इस आदेश से पूरे दफ्तर में खलबली मच गई और सिर्फ जनसत्ता ही नहीं, इंडियन एक्सप्रेसऔर फाइनेंसियल एक्सप्रेस के लोग भी मालिक का यह आदेश सुनकर सन्न रह गए। जनसत्ता में तो तत्काल मुर्दनी छा गई। यह क्या हो गया? जनसत्ता में तो कोई कभी ऐसा सोच भी नहीं सकता था। कंपनी में प्रभाष जोशी की बहुत बड़ी हैसियत थी।
डाक संस्करण का पहला और अंतिम पेज बन रहा था। वरिष्ठ मुख्य उप संपादक मनोहर नायक पेस्टर से पहले पेज पर खबरें लगवा रहे थे। तभी जनरल मैनेजर जीआर सक्सेना हांफते हुए संपादकीय विभाग में आए और समाचार संपादक श्रीश चंद्र मिश्र के पास गए। उनके हाथ में एक टेलीप्रिंटर संदेश था। उन्होंने फुसफुसाकर श्रीश जी से कुछ कहा और उनको वह संदेश दिखाया। संदेश अखबार समूह के नए मालिक विवेक गोयनका का था जो बंबई से आया था। तुरंत सक्सेना जी और श्रीश जी पेज बनवा रहे मुख्य उपसंपादक मनोहर नायक जी के पास जाकर खड़े हो गए। मैनेजर सक्सेना जी ने मनोहर नायक जी को भी मालिक का वह संदेश दिखाया। तब तक पूरे संपादकीय विभाग में यह खबर आग की तरह फैल चुकी थी कि प्रभाष जोशी जी प्रधान संपादक पद से हटा दिए गए और अब बंबई के राहुल देव जनसत्ता के संपादक होंगे। पूरे जनसत्तासंपादकीय विभाग में सन्नाटा छा गया। थोड़ी देर बाद टेलीप्रिंटर विभाग से एक सज्जन एक संदेश लिए मेरे पास आए। संदेश मेरे नाम था जो मालिक विवेक गोयनका की तरफ से आय़ा था। अंग्रेजी में लिखे इस संदेश में लिखा था कि “जनसत्ता के प्रधान संपादक प्रभाष जोशी आज रिटायर हो रहे हैं। उनकी जगह बंबईजनसत्ता के स्थानीय संपादक राहुल देव को जनसत्ताका कार्यकारी संपादक बनाया गया है। आज से अखबार के प्रिंटलाइन में राहुल देव का नाम कार्यकारी संपादक के रूप में छपेगा और प्रभाष जोशी का नाम सलाहकार संपादक के रूप में जाएगा। प्रभाष जोशी का नाम राहुल देव के नाम के नीचे की लाइन में जाएगा। कृपयाजनसत्ता के प्रिंटलाइन में अभी से यह जरूरी बदलाव सुनिश्चित करें।“
मालिक विवेक गोयनका के इस आदेश का पालन तो होना ही था, प्रमुखता से हो भी रहा था। डाक संस्करण से ही प्रिंटलाइन में यह बदलाव करवा दिया गया। मुझे जिम्मेदारी मिली थी कि मैं पेज छूटते समय पेज पर यह देख लूं कि प्रिंटलाइन में आदेशानुसार बदलाव हो गया है। मैंने देख लिया कि जरूरी बदलाव कर दिया गया है। और इस तरह उस दिन जयप्रकाश शाही जी की भविष्यवाणी पूरी तरह सच साबित हो गई। राहुल देव ने प्रभाष जोशी को आखिरकार धक्का दे ही दिया।
जनसत्ता के पन्ने पर संपादक का नाम बदलने की यह कवायद पूरी किए जाने के तुरंत बाद दिल्ली संस्करण के स्थानीय संपादक बनवारी जी अपने कक्ष से निकल कर प्रभाषजी के कक्ष में गए और उनसे मुलाकात की। कुछ बातें की। वे कुछ मिनट तक प्रभाषजी के कमरे में रहे और फिर वहां से निकलकर महाप्रबंधक जीआर सक्सेना के पास गए और उनको अपना इस्तीफा सौंपा और चुपचाप दफ्तर से बाहर निकल गए। वे दोबारा फिर कभी एक्सप्रेस बिल्डिंग नहीं आए। बनवारीजी बहुत ही शांत प्रकृति के स्वाभिमानी व्यक्ति रहे। वे 1983 में टाइम्स ग्रुप की समाचार पत्रिका दिनमान की नौकरी छोड़कर प्रभाषजी के साथ जनसत्ता शुरू करने आए थे और तभी से जनसत्ता के ही होकर रह गए थे। प्रभाष जोशी जी उन्हें लेकर आए थे। जनसत्ता में शुरू में सिर्फ तीन ही लोग थे। प्रभाष जोशी, बनवारी और हरिशंकर व्यास। व्यासजी ने इस घटना के कुछ ही महीने पहले इस्तीफा दे दिया था। इतने बड़े कद के बनवारीजी अपने से बहुत-बहुत जूनियर राहुल देव के नीचे कैसे काम कर सकते थे। सो उन्होंने राहुल देव का नाम सुनते ही तुरंत इस्तीफा दे दिया। यही उचित भी था।
59. रिटायर नहीं, साजिश के शिकार हुए प्रभाष जोशी
जनसत्ता के प्रधान संपादक प्रभाष जोशी का जन्म 15 जुलाई 1937 को हुआ था। इस तरह नियमानुसार उनको 58 साल की उम्र पूरी होने पर 14 जुलाई 1995 को रिटायर हो जाना था। पर कंपनी ने उनको रिटायर नहीं किया। उन्होंने अपनी तरफ से कभी रिटायर होने की इच्छा भी जाहिर नहीं की थी। वैसे कोई कंपनी अपने कर्मचारी को उससे पूछकर रिटायर नहीं करती। प्रभाषजी तो जनसत्ता के जन्मदाता थे। वे तो इंडियन एक्सप्रेस अखबार समूह के मालिक रामनाथ गोयनक जी के एकदम खासमखास थे। वे जब कभी कुछ कह देते थे तो रामनाथ गोयनकाजी उसपर कभी कोई किंतु-परंतु नहीं करते थे। प्रभाषजी के कहने का मतलब ही होता था मालिक रामनाथ गोयनका जी का आदेश। रामनाथ गोयनका जी के नाती विवेक खेतान को कानूनन रामनाथ गोयनका जी का गोद लिया पुत्र बनवाकर और विवेक खेतान से विवेक गोयनका बनवाकर उन्हें पूरे इंडियन एक्सप्रेस अखबार समूह यानी पूरी कंपनी का उत्तराधिकारी और मालिक बनवानेवाले प्रभाष जोशी जी ही तो थे। विवेक गोयनका के लिए इतना कुछ करनेवाले प्रभाष जोशी जी को कौन रिटायर कर सकता था। शायद विवेक गोयनका भी नहीं। वे तो जनसत्ता के जीवनभर के प्रधान संपादक थे।
जानकार बताते हैं कि बहुत कम लोग जानते होंगे कि रामनाथ गोयनका जी जीते जी लिखकर गए हैं किजनसत्ता को कभी बंद नहीं करना है और प्रभाष जोशी इसके प्रधान संपादक बने रहेंगे। रामनाथ गोयनका जी ने प्रभाष जोशी जी को जनसत्ता का सलाहकार संपादक बना देने जैसी कभी कोई बात नहीं की थी। रामनाथ गोयनका जी यह भी लिखकर गए हैं कि प्रभाषजी का जीवनकाल पूर्ण होने के बाद भी इंडियन एक्सप्रेसकंपनी उनके आश्रितों का पूरा-पूरा खयाल रखती रहेगी। वर्ष 1994 में जब प्रभाष जोशी जी को हर्ट अटैक आया था और बंबई में उनकी बाईपास सर्जरी हुई थी तो घर आने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ने की इच्छा जरूर जाहिर की थी। मालिक विवेक गोयनका को उन्होंने अपनी इस इच्छा से अवगत भी कराया था। पर नए मालिक विवेक गोयनका जी ने उनका यह अनुरोध नहीं माना था। प्रभाष जी को जनसत्ता का प्रधान संपादक बनाए रखा गया था। जनसत्ता का मतलब था प्रभाष जोशी और प्रभाष जोशी का मतलब था जनसत्ता । प्रभाष जोशी जी प्रधान संपादक के रूप में जनसत्ता को निरंतर अपनी सेवाएं देते जा रहे थे। फिर उनको 16 नवंबर 1995 को अचानक प्रधान संपादक के पद से कार्यमुक्त कर दिया गया। उसी दिन जनसत्ता के बंबई संस्करण के स्थानीय संपादक राहुल देव को जनसत्ताके तमाम संस्करणों का कार्यकारी संपादक बना दिया गया। अगर कंपनी को प्रभाष जी को रिटायर ही करना था तो फिर उसी दिन कर देना था जिस दिन प्रभाष जी ने अपने जीवन के 58 साल पूरे किए थे। यानी 14 जुलाई 1995 को। पर वे तो 58 साल पूरे होने के महीनों बाद तक भी अपने पद पर बने रहे। जानकार बताते हैं कि कंपनी मालिक ने प्रभाष जोशी को कार्यमुक्त कर अपने उस आदेश को रिटायरमेंट का एक झूठा नाम दे दिया। दरअसल, प्रभाष जोशी एक गहरी साजिश के शिकार हो गए और इस इन-हाउस साजिश के सूत्रधार थे जनसत्ताके बंबई संस्करण के स्थानीय संपादक राहुल देव जिनको प्रभाषजी अपने एक खास सहयोगी की सिफारिश पर इलाहाबाद की समाचार पत्रिका माया से निकालकर लाए थे। जिसे प्रभाष जी ने नौकरी दी, संस्करण का स्थानीय संपादक बनाया और दूध पिलाया उसी ने उनको डंस लिया। जानकार लोग मानते हैं कि राहुल देव ने ऐसी साजिश रची कि रामनाथ गोयनका जी का वचन भी झूठा हो गया और प्रभाष जोशी जी श्रीहीन बना दिए गए। जयप्रकाश शाही ने यही तो भविष्यवाणी की थी।
– गणेश प्रसाद झा
आगे अगली कड़ी में.....
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