कहलगांव की गंगा में पहाडियों पर ऋषियों के आश्रम
कहलगांव में गंगा का विहंगम नजारा देखते ही बनता है। बिहार का भागलपुर आज सिल्क सिटी के नाम से मशहूर है। यहां एनटीपीसी का बिजली उत्पादन संयंत्र भी है जो इस शहर को एक अलग पहचान देता है। भागलपुर यानी पौराणिक शहर भागदत्तपुर यानी भाग्योदय करनेवाला शहर। विक्रमशिला की पहाड़ियों के करीब बसे इसी भागलपुर जिले में स्थित है कहलगांव तहसील और कहलगांव अनुुुुमंडल जिसका नाम ॠषि कहोल के नाम पर पड़ा है। कहोल ऋषि महाभारत में वर्णित ऋषि अष्टावक्र के पुत्र थे। ऋषि अष्टावक्र ने अपने दुष्ट राजा को शास्त्रार्थ में हराकर कारागार में बंद अपने पिता को मुक्त करा लिया था।
भागलपुर की तरह कहलगांव शहर भी बिल्कुल गंगा किनारे बसा है। कहलगांव में गंगा के पांच प्रसिद्ध घाट हैं। यहां गंगा उत्तर दिशा की ओर बहती है और इसलिए उत्तरवाहिनी कहलाती है। वैसे तो गंगा भागलपुर के सुल्तानगंज में भी उत्तरवाहिनी कही जाती है, पर यहां कहलगांव के लोग कहलगांव में ही गंगा को असली तौर पर और स्पष्ट रूप से उत्तरवाहिनी बताते हैं।
कहलगांव में गंगा की बीच जलधारा में तीन छोटी-छोटी बेहद सुंदर पहाड़ियां हैं। हरे-भरे वृक्षों से लदे और चारों तरफ हरे रंग के दिखनेवाले साफ-सुथरे जल से घिरे होने की वजह से ये पहाड़ियां बड़ी ही रमणीक और विहंगम दृश्य उत्पन्न करती हैं। इनमें से एक पहाड़ी पर शांति बाबा नामक एक ऋषि का एक मंदिर है। कहा जाता है कि पौराणिक काल में शांति बाबा नामक एक ऋषि का यहां आश्रम था और वे ऋषि यहीं निवास करते थे। अब वह एक तीर्थस्थल बन गया है। कहलगांव के लोगों का मानना है कि भगीरथ की गंगा को आचमन करके पी जानेवाले ऋषि जाह्नवी सुल्तानगंज में नहीं, कहलगांव में ही थे और उनकी कुटिया कहलगांव की गंगा के मार्ग पर ही थी।
इसे मजाक समझें या फिर एक कड़वी सच्चाई, पर वहीं घाट पर बैठे कुछ स्थानीय युवकों ने बताया कि, "पहाड़ पर जाना चाहते हैं तो एक नाव ले लीजिए। वहां एक रेस्टोरेंट भी है। वहां खाना भी मिल जाएगा और दारू भी। चाहेंगे तो मौजमस्ती के लिए लड़कियां भी मिल जाएंगी।"
घाट पर गंगास्नान करनेवालों की खासी तादाद थी। कुछ लोग बड़ी सी बंशी लगाकर मछलियां भी पकड़ रहे थे। तभी एक नौका भी वहां से रवाना हुई। पूछने पर पता चला कि उसमें मछली पकड़ने वाले लोग सवार हैं। दूर गंगा में धूप में चमकते सफेद रेतों के दूर तक फैले बड़े-बड़े टीले भी दिखाई पड़े।
गंगा का जलस्तर अभी मध्य जून में बाजार के निचले ढलान वाले मोहल्ले की सड़क से करीब 50-60 फुट नीचे है और गंगा घाट पर बनी बड़ी-बड़ी सीढ़ियों के अंतिम पायदान से सटकर बह रही है। पर घाट किनारे रह रहे लोगों ने बताया कि बाढ़ के दिनों में गंगा का जलस्तर 60 फुट ऊपर आकर मोहल्ले की सड़क को छूने लग जाता है।
कहलगांव शहर की दीवारें 200-300 साल पुराना इतिहास बयां करती हैं। कहलगांव बाजार के बीचोबीच एक जगन्नाथ मंदिर है जिसके शिलापट्ट पर उसके निर्माण का वर्ष 1867 लिखा है। आधे से ज्यादा कहलगांव पुरानी इमारतों और हवेलियों का शहर है। दीवारों और घरों की डिजाइन, दरवाजों की रूपरेखा और मेहराब बताते हैं कि वे दो सौ साल या उससे भी अधिक पुरानी हैं। दीवारों में जहां-तहां पुरातन काल की बड़े आकार की ईंटें झांककर अपने पुरातन होने की कहानियां कह रही हैं। इन इमारतों ने कई सारे राजाओं, रजवाड़ों और शासकों को पैदा होते और मिटते देखा है। कहलगांव के एकमात्र बाजार 'पुरानी बाजार' में इन मकानों और हवेलियों में ही दुकानें भी चल रही हैं। हवेलियों में ही छोटे दुकानदार भी हैं और बड़े स्टॉकिस्ट और ट्रेडर्स भी। कहलगांव चावल का बहुत बड़ा थोक बाजार है बताते हैं। पर कहलगांव में एक भी चावल मिल नहीं है। सारा चावल पीरपैंती और बाराहाट से तैयार होकर आता है। बाराहाट अंग्रेजी हुकूमत से भी पहले से एशिया का बड़ा और थोक चावल बाजार रहा है। कहलगांव से बाराहाट की दूरी महज दस किलोमीटर है।
कहलगांव गंगा के पेटे में बसे शहर जैसा है। यह एक बाढ़ प्रभावित क्षेत्र भी है। बारिश और बाढ़ के दिनों में कहलगांव हरतरफ से पानी से घिरा हुआ एक टापू जैसा बन जाता है। यहां की मुख्य सड़क बारिश और बाढ़ के दिनों में पानी में डूब जाती है। गंगा का बढ़ता जलस्तर इस सड़क को अपने आगोश में ले लेता है। और तब कहलगांव से भागलपुर जिला मुख्यालय को जाना भी काफी कठिन हो जाता है। आप कहीं और भी बड़ी परेशानी उठाकर ही जा पाएंगे। रेल मार्ग ही तब आवागमन का एकमात्र जरिया बच जाता है। रेलवे ने कहलगांव स्टेशन के पास लगभग दो दर्जन बिना फाटक के दरवाजों वाली एक पुलिया बनाकर रेल पटरियों को गुजारा है ताकि बाढ़ का पानी रेल पटरियों पर न आ पाए। रेलवे की यह पुलिया किसी नदी पर नहीं, एक बडे से गड्ढे के ऊपर बनी है। यह गड्ढा बरसात में पानी से भर जाता है और तब यह एक नदी जैसा बन जाता है।
राजमहल और पाकुड़ की पहाड़ियों से कटे पत्थर (स्टोन चिप्स) लदे ट्रक दिन रात यहां से गुजरते रहते हैं। इन ओवरलोडेड वाहनों की वजह से यहां की सड़क बनने के कुछ दिनों बाद ही खस्ताहाल हो जाती हैं। अब गंगा से बाढ़ का पानी सड़क को डुबो देता है इसलिए सरकारी ठेकेदार सड़क निर्माण में जमकर भ्रष्टाचार करते हैं। सडक कमजोर बनाई जाती है और कुछ समय बाद सड़क खराब हो जाने का कारण बाढ़ को बता दिया जाता है। इस तरह सड़क के समय से पहले खराब हो जाने के लिए बदनामी का ठीकरा गंगा मां पर फोड़ा जाता है। इस बार फिर सड़क बनाई जा रही है। काम अभी काफी जोरों पर चल रहा है। पर इस बार पुरानी सड़क को पूरी तरह से उखाड़ कर सबकुछ नए सिरे से किया जा रहा है। मिट्टी डालने की जगह एनटीपीसी की कोयले की राख से सड़क बनाई जा रही है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार मजबूत और टिकाऊ सड़क बनेगी।
एनटीपीसी कहलगांव शहर में है जरूर पर वह मूल शहर से बिल्कुल अलग और कटा हुआ है। एनटीपीसी कॉंप्लेक्स और उसकी कालोनी में बाहरी लोगों का प्रवेश निषेध है। एनटीपीसी के लोग सौदा-पानी लेने भी कभी कहलगांव बाजार नहीं आते। उनका खुद का सुसज्जित बाजार है जो कॉंप्लेक्स के अंदर ही बना हुआ है। एनटीपीसी वालों की दुनिया ही अलग है। कहलगांव शहर का आकाश बिजली के ग्रिड के हाई वोल्टेज ओवरहेड तारों से पूरी तरह आच्छादित है। एक सच्चाई यह भी है कि देश को बिजली देनेवाले इस कहलगांव शहर में बिजली खूब कटती है।
- गणेश प्रसाद झा
(फोटो: भागलपुर के कहलगांव में गंगा की बीच जलधारा में स्थित पहाड़ियां)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें